देर से नींद खुली। पर सिर्फ एक व्यक्ति क्यों? अनेक व्यक्ति सामाजिक संगठनों में चोला बदलकर छिपे हुए हैं। सभी संगठनों से इस तरह के दागी व्यक्ति निकाले जाएँ। और यही नहीं, अपशब्दों एवं गाली का प्रयोग करने वाले तथाकथित सामाजिक नेताओं को भी संगठन से बाहर किया जाए। जो भी व्यक्ति ऊपर के पैरामीटर को पूरा नहीं करते उन्हें हर हाल में बाहर करना ही चाहिए। सबके लिए एक जैसा नियम हो। मैं तो कहता हूँ कि गाली देनेवाले को कोई सामाजिक संगठन सदस्य भी न बनाये। पदाधिकारी तो दूर की बात है। अगर पारिया ग्रुप में अन्य ऐसे दागी छवि के लोग हैं, तो तत्काल उन्हें निकाल बाहर करना चाहिए, चाहे वे जिस भी पद पर हों। डॉ नाग ने अच्छी शुरुआत की है। मैं उन्हें शत शत बधाई देता हूँ। अब कम से कम पारिया गुट अपने यहाँ स्वच्छता लाये। सबके बायोडाटा ले और सार्वजनिक करें। स्थानीय पुलिस से चरित्र प्रमाण पत्र एवं पदाधिकारी बनाने के पूर्व का सम्पति का विवरण ले। पता नहीं कहाँ कहाँ क्या निकले? साथ ही सभी सदस्यों से घोषणा पत्र भरवाये कि उनका चरित्र निष्कलंक है।समाज से जुडे एक प्रसिद नेता ने कहा की जब अदालत ने किसी को बरी कर दिया तो समाज उसे जीवन भर अपराधी कैसे मान सकता है I क्या एक बार किसी अपराध में शामिल होने पर किसी को आजीवन सामाजिक बहिष्कार करने की इजाजत हमारा संविधान देता है ? वाल्मीकि अगर डाकू और हत्यारे के बाद परिवर्तित होकर रामायण लिखने वाला संत बन सकते है I अंगुलिमाल महात्मा बुध की शरण में आने के बाद ह्रदय परिवर्तित हो कर बदल सकते है तो कायस्थ समाज क्यूँ नहीं भटके हुए लोगो के लिए समाज के दरवाजे नहीं खोल सकता है , ताकि वो नयी जिंदगी की राह पर चल सके असल मुदद है पारिया गुट का आपसी विवाद वही अधिकाँश लोग इसे दो लोगो की आपसी लड़ाई बता कर अपना पल्ला झाड़ते दिखे और बहिष्कार जैसे शब्दों पर पूछ रहे है की क्या कायस्थ समाज में हुक्का पानी जैसे कोई व्यवस्था को लागू करने की कोशिश की जा रही है ? क्या कायस्थ समाज जो बाकी जातीयो से सामाजिक परिवेश में बहुत आगे था अब वापस कबीलाई संस्कृति की तरफ बदने जा रहा है वहीं एक सवाल भी उठ रहा है की कहीं पारिया गुट के इस झगडे की आढ़ में अपने उपर उठे गबन , सविता एस एस लाल के अपमान और गेस्ट आफ आनर केस में आरोपी पति पत्नी के इस्तीफे ना होने के विवादों से छुटकारा तो नहीं पाने जा रहा है I क्योंकि यही ललित सक्सेना कुछ दिनों पहले तक इस गुट के प्रदेश प्रभारी और राष्ट्रीय कार्यकारणी सदस्य भी थे और बड़ोदा सम्मलेन में शामिल भी थे ? ऐसे में कायस्थ खबर का बड़ा सवाल ये भी है की क्या पारिया गुट ने ललित सक्सेना को शामिल करने से पहले उनका बैक ग्राउंड चेक नहीं किया था ? या अब विवाद होने की दशा में उनको निशाना बनाया जा रहा है ?
सिर्फ एक व्यक्ति क्यों? सबके लिए एक जैसा नियम हो, अपशब्दों एवं गाली का प्रयोग करने वाले तथाकथित सामाजिक नेताओं का भी बहिष्कार हो : समाज में उठी मांग
एक न्यूज़ पोर्टल के ग्रुप में राजस्थान के पारिया गुट के पदाधिकारी अब खुद अपने ही बनाए जाल में फंसते दिखाई दे रहे है I ललित सक्सेना को लेकर बनाए गए एक विवाद पर लोगो की अपनी अपनी राय आ रही है I जहाँ कुछ लोग इसे पारिया गुट के अपने ब्लड डोनेशन कैम्प के कामयाब ना होने की हताशा को छुपाने की कोशिश मान रहे है वही कई लोग इस पर सिर्फ एक ही आदमी को टार्गेट क्यूँ करने जैसे सवाल भी उठा रहे है
ब्लड डोनेशन कैम्प में क्या हुआ ?
राजस्थान से मिली जानकारी के अनुसार पारिया गुट का बहुप्रतीक्षित ब्लड डोनेशन कैम्प में उम्मीद के मुताबिक़ लोग नहीं आ सके है इसीलिए उसके बाद हुए कार्यक्रम में ये लोग आपस में उलझ गये I
पीड़ित पक्ष ने क्यूँ नहीं कराई अभी तक ऍफ़ आई आर ?
गौरतलब है की रविवार को पारिया गुट के दो लोगो ने अलग अलग दो कार्यक्रम एक ही दिन रखे हुए थे ऐसे में जब पारिया गुट के लोग पहले से मौजूद ललित सक्सेना के सामने पहुंचे तो ललित ने वहां के एक पदाधिकारी में कुछ कटाक्ष कर दिया , जिस पर दोनों में बहस हो गयी और उसी घटना को डा आदित्य नाग ने ललित सक्सेना के इतिहास से जोड़ दिया I बड़ी बात ये है की इस घटना को लेकर अभी तक ललित सक्सेना के उपर कोई ऍफ़ आई आर तक दर्ज नहीं कराई गयी जो की किसी भी विवाद की स्थिति में सबसे आवश्यक है
कायस्थ समाज में इसको लेकर पक्ष और विपक्ष दोनों में ही लोग खड़े हो रहे है , जहाँ लखनऊ के पुलिस महकमे में कार्यरत और राष्ट्रीय कायस्थ वृंद के संजीव सिन्हा, डा नाग समेत कुछ लोग किसी के आपराधिक बैकग्राउंड को कह कर उसके बहिष्कार की माग पर अड़ गए है
सिर्फ एक ही क्यूँ , mbb सिन्हा ने पारिया गुट पर साधा निशाना
वही इसके विपक्ष में भी बोलने वालो की कमी नहीं है I रांची से अखिल भारतीय कायस्थ मह्सभा के राष्ट्रीय सचिव mbb सिन्हा ने इसके बहाने पारिया गुट पर ही निशाना साधा है उनका कहना है