
आशु भटनागर I तमाम विरोधो और समर्थन के बीच पटना में कायस्थों का बहुप्रतीक्षित "कायस्थ समागम २०१५ " सफलता पूर्वक संपन्न हो गया , जिसने ना केवल कायस्थों की बल्कि पटना के सत्ता संघर्ष मैं सभी राजनातिक दलों की सारी स्थिति को एक बार फिर से बिखेर दिया है इस कार्यक्रम के लिए लोग राज्यसभा सांसद श्री आर के सिन्हा को उनके भागीरथ प्रयासों के लिए साधुवाद दे रहे है वही कुछ लोग इसे उनका निजी कार्यक्रम कह कर अपनी हताशा भी व्यक्त कर रहे है । आइये देखते है इससे किसको क्या मिला और कोई क्यूँ परेशान है -
कायस्थ समागम ने लौटाया कायस्थ समाज का खोया हुआ आत्मविश्वाश 
वस्तुतः पिछले १० वर्षो मैं कायस्थों की राजनातिक पटल पर कमज़ोर स्तिथि और समाज मैं समाज के नेताओं की ना उठने वाली आवाजों से कायस्थ समाज ना केवल दुखी था बल्कि शने-शने अपना आत्म-विश्वास भी खोने लगा था , कायस्थ समाज के नित नये बनते संघठन और उनके कुछ ना कर पाने से जहा युवा चित्रांश समाज के लिए सोचना बंद कर रहा था वही समाज की संघठित पहचान पर इसका प्रतिकूल असर पढ़ रहा था । पिछले १० सालो मैं कायस्थ समाज अगर कोई आयोजन करता भी था वो गैरराजनातिक , सांस्क्रतिक या विवाह आयोजन तक ही सीमित रह गया था ।
मगर पिछले कुछ दिनों मैं जिस तरह से आर के सिन्हा जी ने कायस्थों को एक करने के लिए इस कार्यक्रम की रुपरेखा तैयार की और उसे अपने राजनातिक लाभ-हानि से अलग रख सिर्फ कायस्थ समाज के लिए सोचा और अब सफलता पूर्वक करके भी दिखाया , उसने उन सभी आवाजों को कमज़ोर कर दिया जो कहते थे कायस्थ एक राजनातिक ताकत नहीं बन सकता I इस सफल आयोजन के दौरान ही कायस्थ खबर को कितने ही लोग इसके वजह से अपने आप को ना फिर से गौरान्वित महसूस करते दिखे बल्कि आपसी मतभेदों को भुला कर एक दुसरे के साथ खड़े भी दिखे ।
विरासत के नाम पर कायस्थों को एक करने की सफल कोशिश 
कायस्थ समागम ने अपनी विरासत को कायस्थों की राजनेतिक स्तिथि के साथ जोड़ने का भी सफल प्रयास किया , लगभग एक हफ्ते पहले से ही कार्यक्रम के प्रचार मैं कायस्थ-खबर टीम द्वारा लिखा नारा सभी कायस्थों की जुबान पर आ गया और उसके फलस्वरूप पहली बार कायस्थ राजनीती मैं महापुरुषों को सम्मान के साथ सामाजिक एजेंडे पर भी रखा गया । जिसमे कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद द्वारा विरासत के नाम पर भारतीय राजनीति के तीन पुरोधाओं का स्मरण करना रहा . सबसे पहले उन्होंने दिवंगत प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री को याद करते हुए उनके कृतित्व को याद किया.वहीं, उन्होंने भारतीय राजनीति के अजातशत्रु देशरत्न राजेंद्र प्रसाद के सरल व्यक्तित्व की याद दिलाई. 12 साल तक भारत के राष्ट्रपति रहे राजेद्र बाबू के सदाकत आश्रम में बिताए दिनों की याद भी रविशंकर ने कराई.इसके बाद उन्होंने तीसरे पुरोधा लोकनायक जयप्रकाश नारायण की स्मृतियों की याद दिलाई. जयप्रकाश नारायण को याद करते हुए रविशंकर ने कहा कि जेपी के सामने सत्ता में हिस्सेदारी करने के कई मौके आए, लेकिन उन्होंने हमेशा जनसंघर्ष का रास्ता चुना। उन्होंने कायस्थों को सक्रिय राजनीती मैं आगे आने के लिए आह्वाहन भी किया
सामाजिक बुराइओ को ख़तम करने का आह्वान
कायस्थ समागम मैं श्री आर के सिन्हा ने अपने संतुलित उद्बोधन मैं कायस्थों को उनके पूर्वजो के स्वर्णिम इतिहास को याद दिलाया और इसके साथ ही उनको समाज मैं व्याप्त दहेज़प्रथा और खर्चीली शादियो जैसे कुप्रथाओं से हटकर नयी परम्पराए भी शामिल करने का सुझाव दिया । इसके लिए श्री सिन्हा ने बिना किसी ताम झाम के हर रविवार को कायस्थ समाज को अपने बच्च्को की दहेज़ रहित शादी भगवान् चित्रगुप्त के मंदिरों मैं करने को कही I उन्होंने इसके दूरगामी परिणाम बताते हुए कहा की इससे लोग शादी विवाह जैसे आयोजन वहां करके भगवान् चित्रगुप्त के नाम को भी आगे बढायेंगे और सामाजिक तोर पर एक दुसरे के साथ भी आयेंगे ।
पटना की कायस्थ एकता ने दिल्ली को दी फिर से नई दिशा बिहार ने हमेशा देश को बदलने वाले आंदोलनों की नीव रक्खी है इसी क्रम मैं कायस्थ समागम के सफल आयोजन से श्री आर के सिन्हा ने देश के दिल दिल्ली और यहाँ से संचालित संस्थाओं को भी एक सन्देश दिया की कैसे अगर हम व्यवस्थित , विनर्म और विजन तीनो को एक साथ बाँध ले तो कायस्थ-समाज को एक करना कोई बड़ा काम नहीं । इस कार्यक्रम के लिए श्री सिन्हा ने जिस तरह बिहार समेत दिल्ली और बाकी देश से भी लोगो को बुलाया और उसके लिए खुद 3 हफ्ते तक लगातार लगे रहे वो समाज के युवाओं को फिर से एक दिशा और दशा देने मैं सफल रहे की विजन और हिम्मत से आप कैसे किसी आयोजन मैं रिकार्डतोड लोगो को बुला सकते हैं ।
फिर भी लोगो के उठते सवाल हालाँकि कोई भी वयवस्था या कार्यक्रम कितना भी सफल हो , कितना भी व्यवस्थित हो नाराज होने वाले लोगो एक संख्या हमेशा आपके साथ रहती है । कायस्थ समागम के साथ भी ऐसा ना कैसे हो सकता था । तो ऐसे ही कुछ विरोध इसके आगाज़ के साथ शुरू हो गये थे जो इसके अंत के साथ भी रहे , अब इनमे चाहे कार्यक्रम के दौरान कई लोगो के द्वारा ग्रुपिस्म की शिकायत करने की बात हो या चाहे कुछ लोगो द्वारा इसके विरोध मैं कायस्थों के नाम पर अन्य कार्यक्रम आयोजित करना रहा हो या चाहे फिर ऐसे ही कुछ और, पर इस कार्यक्रम ने उन सब लोगो को आज आपने मुह बंद करने पर मजबूर कर दिया है और सोचने पर मजबूर किया की वो अब वो इस पर बोलने से बागी या कायस्थ समाज के विरोधी भी कहे जा सकते है ।
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