सर्वानंद जी खबर लाये है एक काल्पनिक पात्र है , जो समाज के विभिन्न मुद्दों पर कटाक्ष करता है I इसका किसी भी व्यक्ति से मिल जाना एक संयोग मात्र हो सकता है I लेख में प्रस्तुत घटनाएं समाज के हित के लिए उभारी जाती है और पूर्णतया हास्य व्यंग कटाक्ष के स्तर भी समझी जाती है I
सर्वानंद जी खबर लाये है : कायस्थ नेता – दिन भर चले अढाई कोस
सर्वज्ञानी सर्वानंद जी को एक खबर मिली. “ दिन भर चले अढाई कोस ” कहावत सुनी होगी. पर हमने एक दूसरी कहावत गढ़ी है, “साल भर चले, और तीन डग भरे.” आज इस पर रिसर्च करने का मन कर रहा था सो निकल पड़े. ऐसे तो हम सर्वज्ञानी है, सबकुछ जानने का दावा है मेरा, पर कुछ ऐसे समाचार मिल जाते हैं कि मै भी कोमा में चला जाता हूँ. मै कोमा में पड़े-पड़े सोच रहा हूँ कि आखिर हम कोमा में क्यों गए? एक डॉक्टर से अपनी नब्ज दिखवाने उसके दवाखाना पहुंचा. डॉक्टर ने मुझे देखते ही कहा- अरे सर्वज्ञानी जी बहुत ठीक वक्त पर आये. मुझे यह बतायें कि मैं ठीक हूँ या कोमा में हूँ. मेरे तो ज्ञान ही हवा हो गए. अरे कहाँ मैं अपना इलाज के लिए आया था, अब मुझे ही डॉक्टर का इलाज करना पड रहा है. मेरा ज्ञान चक्षु जागा और मैंने कह दिया – महाशय आप तो पिछले एक साल से कोमा में हो. कुछ भी खाया पिया नहीं फिर भी मोटे हो रहे हो. आपकी बीमारी ला-इलाज है. अब बताओ यह रोग हुआ कैसे? बेचारे फट पड़े. बोले क्या बताऊँ मैंने अपनी सहायता के लिए एक कम्पाउण्डर रख लिया था. हमारा रेवोल्विंग चेयर देख कर उसका जी ललच गया. एक दिन हमें उठाकर यहाँ पटक गया और खुद डॉक्टर बना बैठा है. मेरे मन-मष्तिष्क में इतनी गंभीर चोटे आई कि मैं कोमा में चला गया हूँ.
मैंने एक जोरदार ठहाका लगाया और कहा कोमा वाले लोग बोलते हैं क्या ? उन्होंने बिगड़ते हुए कहा ज्यादा बनो मत. तुम भी तो कोमा के मारे हुए हो. हम एक बिरादरी के हैं एक दुसरे को मदद करनी चाहिए.
इस बार मेरा आनंद हवा हो गया. कोमा का भ्रम टूट गया और सिर पकड़कर सोचने लगा.
अब न सर्वज्ञानी रहा न सर्वानन्द.
जान बचे तो खाए कंद.
दौड़ा-दौड़ी छोडो भाई.
टांग खिंच कर खाओ मलाई.
तुम भी एक पलटनिया मारो.
सर्वानन्द बन दिन गुजारो.
तभी से मै सोच रहा हूँ अब करना क्या है?
-सर्वज्ञानी सर्वानन्द.