लेकिन आयोजक हो या संयोजक सबको इवेंट वाले दिन आगे दिखने की होड़ तो थी आज जब उसकी जबाबदेही का सवाल उठने का दिन है तो लोग चुप ही रहे I कोई नहीं जानता कि सारी दुनिया के सामने उस दिन जिस नॅशनल एम्प्लामेंट एक्सचेंज की स्थापना हुई थी वो आज कहाँ है ? कौन उसको चला रहा है , वो कहाँ से आपरेट हो रही है ? ऐसे बहुत मुद्दे है जिन्हें आज पूछा जाना चाह्यी था लेकिन अफ़सोस की वहां मौजूद १५०० लोगो में से आज किसी को इन बातों की सुध लेने की इच्छा नहीं है और उपलब्धियों को भूल जाने की कायस्थों की यही आदत हमारी सबसे बड़ी कमजोरी हैकायस्थखबर ने इस बारें में कई लोगो से बात करने की कोशिश भी की लेकिन शायद अब उनके लक्ष्य बदल गये है या इसे वर्ल्ड कप की तरह 3 साल में एक बार करने से ही इतिश्री कर ली जानी है कायस्थ समाज की यही बिडम्बना है की आज हम एक साल बाद भी इस माइलस्टोन को भूल भी गए तो अपने राष्ट्रीय स्तर पर जुड़े लोगो को बता भी नहीं पाए की आखिर हमने किया क्या था , हम अपने दूसरी पंक्ति को ये बताने में असफल साबित हो रहे है I हम एक के बाद एक इवेंट तो बनाते है मगर उन्हें एक चेन में जोड़ने में असफल हो रहे है I
वर्ल्ड कायस्थ कांफ्रेंस अवलोकन : उपलब्धियों को भूल जाना कायस्थों की आदत और सबसे बड़ी कमजोरी है
आज जब मैं इस लेख को लिख रहा हूँ तो ये सवाल सबसे बड़ा है की आखिर १ साल पहले जिस जोश खरोश के साथ दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में देश विदेश से कायस्थ एक जगह मिले I गिले शिकवे हुए कार्यक्रम की आलोचना और तारीफ़ दोनों ही की गयी I जिसके बाद निश्चित तोर पर राष्ट्रीय स्तर पर एक बहस शुरू हुई और कायस्थ एक धुरी पर घुमने के लिए आगे भी आने शुरू हुए I
लेकिन आज पुरे दिन के इंतज़ार के बाद भी मुझे किसी भी आयोजक , संयोजक और उस समय इसके क्रेडिट के लिए लड़ने वाले किसी भी संगठन के लोगो से एक शब्द भी सुनाई नहीं दिया I दरअसल जब आप किसी अचीवमेंट को सेलेब्रेअट करना भूल जाते है तो उसके दो ही मायने होते है या तो आप उसकी कोई वैल्यू नहीं करते है या फिर आपके पास उस तरह के इतने अचीवमेंट होते है की आपको कुछ याद नहीं रहता
कायस्थ समाज आज इसी कशमकश में उलझा है उसके लोग इस बात में ही उलझे है की समाज में वो कहाँ है ? यहाँ हर रोज नया ब्रांड बनता है और हर रोज उसे भुला दिया जाता है I देखा जाए तो आज एक साल बाद वहां हुई उद्घोश्नाओ के अवलोकन का दिन था I उसके चलते आज समाज में हम कहाँ तक चले और कहाँ पर छुट गए उसको समझने का दिन था I