अभाकाम वाली ही स्थिति कमोवेश इसमें पनप गयी है। लेकिन बीते तीन महीनो से इसमें उठा पटक का दौर जारी है। हमसभी झारखण्ड के लोग यह सोंचते रहे अब हालात में सुधार होगा तब सुधार होगा। लेकिन हालात दिनानुदिन और बदतर होती गयी। अब तो इसके ग्रुप में जुड़े लोग हथियार तक उठाने की बात करने लगे। लेकिन ग्रुप में शामिल मुख्य समन्वयक समेत अन्य लोग वैसे लोगों के प्रति एक्शन लेने के बजाय चुपी साधे रहे। जो दुखद पहलू है।
जिसके कारण ही श्री त्रिपुरारी प्रसाद बक्सी जो इसके झारखण्ड प्रदेश समन्वयक है न कि गिरिडीह जिला सयोजक उन्होंने कायस्थवृंद से खुद को अलग कर लिया।श्री बक्शी के कहने पर ही मैं कायस्थवृंद में शामिल हुआ था। क्योंकि इसके विचार मुझे उस वक़्त अच्छे लगे थे। इतिहास साक्षी है कि मै अपने 47 वर्षीय जीवन में कभी भी खुद को राजनीतिक नही बनने दिया था। पत्रकारिता के पेशे से 1991 से जुड़ कर सर्वसमाज हित का काम करता रहा। इस मंच से जुड़ मुखर होकर कायस्थ हित की अगुवाई किया।
लेकिन जिन्होंने मुझे कायस्थवृंद में लाया जब वह ही वँहा नही रहे तो मैने भी खुद को कायस्थवृंद से अलग कर लिया।
हम जंहा थे जैसे थे अच्छे थे।
कायस्थ वृंद में लाबिंग और गुटबाजी सामने आयी , बक्षी के बाद उनके समर्थको ने कायस्थ वृंद छोड़ना शुरू किया
कायस्थ वृंद में लाबिंग और गुटबाजी का खेल अब खुल कर सामने आने लगा है I त्रिपुरारी बक्षी के कायस्थ वृंद छोड़ने की घोषणा के बाद उनके समर्थको ने कायस्थ वृंद छोड़ना शुरू किया I इस कड़ी में सबसे उनके समर्थको में गिरिडीह , झारखंड के रंगकर्मी सह पत्रकार राजेश कुमार अलग हुए है I हास्यापद ये है की की कायस्थ वृंद को छोड़ने का कारण राजेश कुमार ने व्हाट्स अप्प ग्रुप में आये एक सन्देश को बताया है I हम उनका सन्देश आपके लिए नीचे दे रहे है I जिससे साबित होता है की कायस्थ वृंद दरअसल व्यक्तिवाद का शिकार हो गया है I और ऐसे में अभी कितने और इस्तीफे होने बाकी है ये भविष्य ही बतायेगा Iराजेश कुमार फेसबुक पर लिखते हैं कायस्थवृंद सामूहिक नेतृत्व की अवधारणा को लेकर बना एक मंच । उसमे सामूहिकता एक वर्ष के अंतराल में ही समाप्त होने लगा। यंहा सिर्फ आरोप प्रत्यारोप और एक दूसरे को निचा दिखाने का खेल शुरू हो गया है। जो समाजहित में कतई उचित नही है।