सभी को साथ लेकर सबसे विचार करके सभी से बात करके अनबोले बिना हुए। मान अपमान की चिंता किए बिना हर छोटे बड़े प्रमुख और कद्दावर समाजबंधु से विनम्रता से बात करके काम करने का सानुरोध आग्रह करना है क्योंकि मेरा तो मूल मंत्र है व्यक्ति का महत्व नहीं समाज सर्वोपरि है। मैं रहूं या नहीं रहूं समाज रहे यानि ''तेरा वैभव अमर रहे मां हम चार दिन रहे न रहेसमन्वय सप्ताह मनावे रंगों का त्यौहार होली बीत गया है। मुझे उम्मीद है सभी सामाजिक बंधुओं ने परस्पर गिले-शिकवे भुलाकर होली मनाई होगी। मैं तो सब भूल गया और बीमारी में होली मनाई आपने व्यक्तिगत भी और सामाजिक स्तर पर होली मिलन किए होंगे अब शक्ति अर्जित करने का समय है। नवरात्र प्रारंभ हो रहे हैं। मेरा आग्रह समाज के सभी बंधुओं से कि वे पूरे नौ दिन योजना व नियमों से शक्ति की साधना करें तथा नव ऊर्जा के साथ पुन: सामाजिक कामों में जुटें। मेरा आग्रह है प्रत्येक प्रांतीय इकाई से, जिलों की इकाइयों से कि वे नवरात्र के बाद एक पूरा सप्ताह समाज के नाम करें। रामनवमी से हनुमान जयंती तक मर्यादा और शक्ति दोनों के समन्वय का सप्ताह मनाएं। इसकी शुरुआत रामनवमी से करें तथा इसका समापन पूर्णिमा को हुनमान जयंती से करें, सामान्यतया रामनवमी 15 अप्रैल को और हनुमान जयंती 22 अप्रैल को है। हो सकता है स्थानीय पंचांग के अनुसार एकाध दिन आगे-पीछे हो। इसे प्रांतीय इकाइयां अपने आप देख लें। लेकिन ध्यान रहे। सप्ताह की तिथि यदि आगे-पीछे होती है उसका स्वरूप प्रांतीय ही रहे। इस सप्ताह के दौरान विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जायें। विचार गोष्ठियां हों बड़ों की, माता बहिनों की, बच्चों की, युवाओं की और समापन का कार्यक्रम सामूहिक रहे। हम मानकर चलते हैं। रघुकुलनंदन राम मर्यादा के प्रतीक हैं, आदर्शों के प्रतीक हैं और उन मानवीय मूल्यों के प्रतीक हैं जिनसे जीवन संवरता है। व्यक्तिगत, सामाजिक, पारिवारिक समस्याओं की जड़ में यही बातें हैं यदि इस आत्मविश्वास के साथ मर्यादा और आदर्श का जीवन जियेंगे तो हमारे दैहिक, दैविक और भौतिक संताप होंगे ही नहीं। वही दूसरी ओर हमें हनुमानजी के जीवन से शक्ति और शालीनता दोनों का संदेश मिलता है। सम्मानित जीवन के लिए जरुरी है कि जीवन अहंकार से मुक्त हो, शालीन हो, किन्तु शालीनता का सम्मान शक्ति है। हमें इस सप्ताह अपने विभिन्न आयोजनों में संकल्प लेना है कि हम आज के युग के अनुरुप संगठित हों, शालीन बनें, मर्यादा और आदर्श पर चलें और शक्तिशाली बने। सब व्यक्तिगत मतभेद भुलाकर समाज को आगे बढ़ावे। व्यक्तिगत अहं, प्रतिष्ठा, वर्चस्र्व को छोड़कर सही दिशा में विचार मंथन शुरु कर समाज की चिंता करें। शक्तिशाली केवल शरीर की नहीं बल्कि मन की शक्ति, बुद्धि का बल, अर्थ की शक्ति, संगठन की शक्ति आदि सभी प्रकार की शक्तियां अर्जित करें। तभी हमारा समाज, हमारा परिवार सम्मानित होगा यही आज की सबसे बड़ी जरुरत है। यह जरुरत व्यक्तिगत और पारिवारिक ही नहीं हमारी मातृ संस्था अखिल भारतीय कायस्थ महासभा को भी है। आने वाले कल में हम रहे न रहे लेकिन संस्था को इतनी ऊंचाई इतना सम्मान अर्जित करके जाएं कि सारा जमाना उसके आगे नमन करेंं। कैलाश सारंग (लेखक मध्य प्रदेश से पूर्व सांसद और अभाकम (सारंग गुट)के रास्ट्रीय अध्यक्ष है ) ( चौपाल श्रेणी मे छपने वाले विचार लेखक के है और पूर्णत: निजी हैं , एवं कायस्थ खबर डॉट कॉम इसमें उल्लेखित बातों का न तो समर्थन करता है और न ही इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी सहमति जाहिर करता है। इस लेख को लेकर अथवा इससे असहमति के विचारों का भी कायस्थ खबर डॉट कॉम स्वागत करता है । आप लेख पर अपनी प्रतिक्रिया kayasthakhabar@gmail.com पर भेज सकते हैं। या नीचे कमेन्ट बॉक्स मे दे सकते है ,ब्लॉग पोस्ट के साथ अपना संक्षिप्त परिचय और फोटो भी भेजें।)
देश में कागजी संस्थाएं बहुत सी काम करती हैं लेकिन हमारी महासभा अकेली ऐसी है जो न केवल अपनी प्राचीनता 125 वर्ष में अद्वितीय है – कैलाश सारंग
तेरा वैभव अमर रहे माँ! हम दिन चार रहें न रहें...पिछले कुछ दिनों से मन और मस्तिष्क की सक्रियता अधिक रही, शरीर की कम। अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, जो हम सबकी मातृ-संस्था है, पूरे स्वरूप के साथ मन में छाई रही। कभी भी छाई हुई है उसकी संपूर्ण यात्रा मानों सजीव हो उठी, उस कालखंड की भी जब मैं नहीं था लेकिन संस्था थी जिसके बारे में मैंने या तो पढ़ा था, अथवा अपने बुजुर्गों के मुुंह से सुना था। मैं श्री मद् भागवत् का अध्येयता हूँ इसीलिए मानता हूं कि हमारी यह मातृ-संस्था तब भी थी जब इसका संवैधानिक स्वरूप नहीं था, और तब भी रहेगी, जब मैं नहीं रहूंगा और यह दुनिया अपने चरम शीर्ष पर होगी। नई सृष्टि में नए स्वरूप के साथ उभरेगी? इन्हीं तमाम बातों में विचार करते ज्यादातर वक्त बीता।
बीते अठारह वर्षों में प्रतिपल मेरी यही कोशिश रही है कि हमारी यह मातृ संस्था का वैभव बढ़े, प्रतिष्ठा बढ़े और इतनी सक्षम बने कि समूचे हिंदू समाज का मार्गदर्शन कर सके जो अतीत में वह करती रही है। सेवा दायित्व संभालने के प्रथम दिन से इसी दिशा में प्रयत्न आरंभ किए और एक एक कदम आगे बढ़ाया। गत 10 जनवरी को भोपाल में आयोजित महासभा के राष्ट्रीय चुनाव इसी यात्रा का एक पड़ाव था। कोई भी चुनाव मंजिल नहीं होता। वह भविष्य की यात्रा का एक पड़ाव होता है। एक नए अध्याय का आरंभ होता है लेकिन इस बार कुछ ऐसी स्थितियां बनीं कि मैं बीमार पड़ गया। जांच कराई तो हार्ट-प्राब्लम निकली। 'हार्ट-पैंसेंट' तो पहले से था ही। पता नहीं क्यों, क्या हुआ एकदम घबराहट हुई और सीने में दर्द हुआ कि मुझे अचानक 'एयर-एम्बूलेंसÓ से दिल्ली जाना पड़ा। एस्कार्ट में भर्ती हुआ और हृदय को सामान्य बनाने डिवाइस (ढ्ढष्टष्ठ) लगानी पड़ी। वह डिवाइस अभी मेरे हृदय को नियंत्रित बना रही है। यह मेरे परिवार की सेवा, मित्रों का सद्भाव और समाज की शुभकामना है या कहूं कि मातृसंस्था का आशीर्वाद ही है कि मैं काफी कुछ सामान्य हुआ। 16 मार्च को छुट्टी हुई और आप सबसे बातचीत करने के लिए आप सबके बीच हूं। मोबाइल का उपयोग वर्जित है लेकिन भोपाल आते ही देशभर के प्रदेशाध्यक्षों और प्रमुख समाजबंधुओं से मैंने लैंडलाइन पर बातचीत कर ली और निरंतर करना जारी है। अब 10 अप्रैल के आसपास पुन: जांच के लिए जाऊंगा। इसके बाद फिर आगे के कार्यक्रम और योजना से आपको अवगत कराऊंगा।
10 जनवरी को जो घटनाक्रम बने, उनका न तो मैं जिक्र करना चाहता और मेरा आशय यह है कि मेरे हृदय पर आघात के लिए वह घटनाक्रम कारण बना। मैं भगवत् गीता का नियमित पाठ करने वाला इंसान हूं। जिसमें माना जाता है कि घटनाएं तो प्रकृति का अंग हैं। प्रश्र यह नहीं है कि कौनसी घटना कब घटती है और उसका निमित्त क्या है लेकिन मनुष्य वह है जो उसकी नकारात्मकता से ऊपर उठकर ऊर्जा को सकारात्मकता में बदले वही धर्म है, और वही लोक कल्याण। नकारात्मकताएं सदैव विघटन पैदा करती हैं, अहंकार और आक्षेप की वृद्धि करती हैं। जिसका प्रभाव भविष्य पर पड़ता है अतीत की एक एक घटना, हमारा मार्ग प्रशस्त करती है बशर्तें हम घटनाओं पर न जाए केवल परिणाम से प्रेरणा लेकर आगे बढ़े। हमें भी यही करना है। स्वयं को तैयार करना है, आगे बढऩे की योजनाएं बनाना है। मैं भी यही कर रहा हूं। मैंने उन पलों को छोड़कर जो मेरे वश के नहीं थे, बाकी स्वास्थ्य सुधार के पलों में भविष्य पर विचार करने का काम किया और बीते अठारह वर्षों की यात्रा की समीक्षा की। मैं मानता हूं कुछ कमियां रही हैं। कुछ योजनाओं को पूरा होने में विलम्ब हुआ है लेकिन फिर भी हम सबने मिलकर अपनी मातृ संस्था की, देशभर में एक विशेष पहचान बनाई है। नई ऊचाइयां छूने का प्रयत्न किया है। सार्वजनिक जीवन में, राजनीति में, सर्विसेस में, एक अलग पहिचान बनी है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक और गुजरात से असम तक विधिवत चुनाव हुए। संगठन का जिलों जिलों तक विस्तार हुआ विधिवत चुनाव से इकाइयां खड़ी हुई और समाज बंधुओं को यह समझने में, समझाने में अब गर्व और गौरव का अनुभव होता है कि वे कायस्थ हैं।
दस जनवरी को वाकई मुझे गर्व हुआ जब मैंने देखा कि देश के विभिन्न प्रांतों के निर्वाचित राष्ट्रीय परिषद के करीब 500 प्रतिनिधि भोपाल पधारे थे। देश में कागजी संस्थाएं बहुत सी काम करती हैं लेकिन हमारी महासभा अकेली ऐसी है जो न केवल अपनी प्राचीनता 125 वर्ष में अद्वितीय है और इस बात में भी कि देश के कौने कौने में इसकी निर्वाचित इकाईयां हैं। इसके नीचे से ऊपर तक संविधान के प्रावधानानुसार चुनाव सार्वजनिक रूप से संपन्न किए जाते है। किसी कमरे में बैठकर कागज पर नहीं होते बल्कि देशभर की इकाइयों के निर्वाचित लोग एकत्रित होकर अपनी पसंद और ना पसंद से पदाधिकारी तय करते हैं। इसका अर्थ है कि हमारी संस्था मौलिक है, और उस भावना और व्यवस्था के अनुसार चल रही है जो किसी भी सामाजिक संगठन को जीवन्त बनाती है एवं उस संविधान के अनुसार चल रही हैं जिसे समाज द्वारा बहुत सोच समझकर बनाया गया था इसीलिए मैंने बहुत विचार कर निर्णय लिया कि संस्था के भविष्य की यात्राएं भी उसी भावनाओं के अनुरुप हों जो भावनाएं इसके स्थापना के वक्त समाज की थी, या भगवान चित्रगुप्त जी की जिस प्रेरणा से मैंने प्रथम सेवक के रुप में अपनी यात्रा आरंभ की थी।
मार्ग में विषमताएं
यूं भी मार्ग में विषमताएं आती हैं। उनसे विचलित नहीं कंटक और कंकड़ में यात्रा गति को बाधित करने का प्रयत्न करते हैं। विपरीत दिशा में ले जाने का प्रयास करते हैं। विपरीत प्रतिक्रिया देने के बजाए सब अपने है ऐसा विचार कर हमें उन्हें समझाना होगा उनसे फेस तो फेस चर्चा करना होगी मुझे विश्वास है सब ठीक हो जावेगा। प्रवाह के अनुकूल तो जीना बहुत सहज होता है प्रवाह के विपरीत जीने की क्षमता रखने वालों ने ही इतिहास बनाए हैं तब किसी एकाध घटनाक्रम, कोई एकाध स्मृति से हमारी यात्रा में गतिरोध कैसे आ सकता है इसलिए हमें आगे बढऩा है, दो गुने उत्साह से आगे बढऩा है। भविष्य का स्वर्णिम पल आने वाली उपलब्धियां इंतजार कर रही हैं और समाज को भी इंतजार करना अभी बाकी है तब बिना एक क्षण विलम्ब किए हमें पूरी कार्य योजना बनाकर आगे बढऩा है।