अखिल भारतीय कायस्थ महासभा और कायस्थ समाज : कुछ चिंतनीय प्रश्न – विश्वविमोहन कुलश्रेष्ठ
अखिल भारतीय कायस्थ महासभा कायस्थ समाज की अपनी सबसे पुरानी संस्था/ संघटन है , जिसका लगभग 129 वर्ष पुराना गौरवशाली इतिहास रहा है ।।
विगत कुछ वर्षों से महासभा कायस्थ समाज को सकारात्मक नेतृत्व दे पाने में अपेक्षाकृत सफल नहीं राहपाई ।
जिसके दुष्परिणाम स्वरूप पिछले
15 वर्षों में कायस्थ समाज में विभिन्न नामों से गठित अनगिनत संघटनों के साथ जुड़ कर कायस्थ समाज न केवल खंडित और विखण्डित होता चलागया ।
अपितु अपने अपने संघटन को बेहतर से बहतर बनाने, अपने संघटन का ज्यादा से ज्यादा विस्तार करने और ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करने तथा जोड़ने की प्रतिस्पर्धा ने समाज में ईर्श्या, वैमनष्यता, एक दूसरे को पटकनी देने का भाव भी पैदा किया है ।
जिसका सम्पूर्ण समाज केलिये आत्मघाती परिणामी यह हुआ कि जहां अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के कायस्थ समाज की सर्वमान्य संस्था होने की पहंचान खत्म हुई ।
वहीँ अन्य विरादरियों के संघटनों, सरकारों और राजनैतिक पार्टियों के बीच यह स्पष्ट सन्देश गया कि कायस्थ समाज बिखर चुका है, इसका न तो कोई सर्वमान्य संघटन है और न कोई सर्वमान्य आवाज़ और न कोई सर्वमान्य नेता परिणति यह हुई
कि तमाम संघटनों , विचारों और आपसी प्रतिस्पर्धा में खंडित विखण्डित बज़ूद हीन कायस्थ समाज अन्यों की दृष्टि में भी उपेक्षा का शिकार होता चला गया ।
धीमे धीमे बिखरा हुआ कायस्थ राजनैतिक पार्टियों के काम का न रहने के कारण राजनीति के पटल पर उपेक्षित होगया वहीँ सरकारी क्षेत्र में भी पिछड़ता चला गया ।।
आज छोटी छोटी और हम से कम आवादी और वोट संख्या वाली जातियां अपने एक संघटन और एक सर्वमान्य नेता की दम पर विभिन्न पार्टीओं के साथ मोल भाव करने की ताक़त रखती हैं ।
हर पार्टी उन्हें अपने पाले में लाने की जी तोड़ मेहनत करती है और उन्हें उनके मन मुताविक पार्टी और सरकार में प्रतिनिधित्व देने के लिए बाध्य दिखती हैं ।।
अफशोस कायस्थों की अच्छी खासी संख्या होते हुए भी कोई पार्टी इस जाती की ओर देखती तक नहीं है ।
इस दुखद स्थित के लिए कोई और नहीं हम स्वयं ही जिम्मेदार हैं ।।
भूल कहाँ हुई है, किससे हुई है, कैसे हुई है इस पर ईमानदारी से विचार करने की जरूरत है, आत्मचिंतन करने की जरूरत है ।।
बर्वाद तो हम हो ही गए हैं ख़त्म होंना शेष है ।।
स्वयं के बुद्धजीवी और प्रबुद्धजीवि होने के दंभ से ग्रसित यह कायस्थ समाज क्या अपने इस पराभव पर चिंतन करेगा ?
क्या महासभा के पुराने गौरव को बापस पाने केलिए कोई रास्ता खोजने का प्रयास होना चाहिये ?
क्या हमारी कायस्थ महासभा अपने समाज के लिए समाज धर्म निभाने में नाकामयाब रही ?
और क्या भविष्य में भी हम अपने सबसे पुराने संघटन अखिल भारतीय कायस्थ महासभा को बगैर छाया और बगैर फल का वृक्ष ही बना रहने देना चाहते हैं ?
बदलाव कैसे आये, कैसे संघटन समाज केलिए उपयोगी, सहयोगी, कल्याणकारी और समाज केलिये विकास का मार्ग प्रसस्त कर्ता बने ?
सकारात्मक सुझाव देने की कृपा करें
विश्वविमोहन कुलश्रेष्ठ