क्या राजनैतिक तौर पर सफल राजनेताओं के पास कायस्थ समाज के लिए कोई दूरगामी सोच नहीं ? आशु भटनागर
आशु भटनागर I अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय अधिवेशन में दो बड़े कद के कायस्थ राजनेता मुख्य अतिथि के तोर पर उपस्थित थे I पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोध कान्त सहाय और शत्रुघ्न सिन्हा I जिनमे शत्रुघ्न सिन्हा तो सेलिब्रिटी स्टेतस भी मेन्टेन भी करते है I जाहिर तोर पर बड़े नाम होने के कारण इनको सुनने का चार्म भी लोगो में हमेशा ही अधिक रहेगा I
शत्रुघ्न सिन्हा को तो लोग उनके स्टार होने के कारण भी लोग पसंद करते हैं I लेकिन मुझे बहुत निराशा हुई जब वहां से आये लोगो ने शत्रुघ्न सिन्हा के भाषण का सार बताया I शत्रुघ्न सिन्हा वास्तव में अपने स्टार स्टेतुस के कारण भले ही तालियाँ बटोर लिए लेकिन उनके पुरे भाषण में कहीं भी कायस्थ समाज के लिए कोई चिंतन मनन नहीं दिखाई दिया I इसके बजाय शत्रुघ्न सिन्हा वहां अपने किसी तम्बाकू निषेध एजेंडे को लोगो में बढ़ाते दिखे I अब इसका असर का आंकलन कीजिये I गुजरात ऐसा राज्य जहाँ तम्बाकू तो बहुत दूर की बात वहां लोग शराब तक नहीं पीते और कायस्थों में तो बिलकुल नहीं ऐसे में वहां तम्बाकू निषेध एजेंडे का प्रसार शत्र्घन सिन्हा के मुख से सुनना अटपटा लगा I ख़ास तो पर मेरे लिए ये इसलिए भी अजीब था क्योंकि २ साल पहले बिहार में हुए कायस्थ महासम्मलेन में भी शत्र्गुघन सिन्हा कमोवेश यही कहते दिखे थे I
अब आते है दुसरे मुख्य अतिथि सुबोध कान्त सहाय जी के KADAM पर I सुबोध कान्त सहाय खांटी राजनेता रहे है और झारखंड में कांग्रेस के बड़े नेता भी I कायस्थ समाज में भी सुबोध कान्त सहाय बिगत वर्षो में सक्रीय रहे है और यत्र तत्र कायस्थ समाज के कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते है लेकिन राजनेता अक्सर सामजिक मंचो पर अपनी ज़िम्मेदारी भूल जाते है और यही बात सुबोध कान्त सहाय के भाषण में भी दिखाई दी I सुबोध कान्त सहाय ने कार्यक्रम में अपना राजनैतिक एजेंडा KADAM (कायस्थ , अति पिछड़ा , दलित , आदिवासी और मुस्लिम ) का गठजोड़ बनाने की बात कही I अब इस कोई सामाजिक संगठन अपने समाज के उत्थान की जगह राजनैतिक तोर पर दलित मुस्लिम की राजनीती में घुसे इसकी सलाह माननीय पूर्व मंत्री ही दे सकते है I लेकिन वो भूल जाते है की सामाजिक संगठन अपनी जातीय अस्मिता की लड़ाई लड़ने के लिए बने है I ना की अति पिछड़ा , दलित , आदिवासी और मुस्लिम के उत्थान की सुबोध कान्त सहाय भूल जाते है की अति पिछड़ा , दलित , आदिवासी और मुस्लिम जैसे लोगो की राजनैतिक और सामाजिक स्थिति आज के दौर में कायस्थ से ज्यदा मजबूत स्थिति में है और ये उनकी राजनीती हो सकती है लेकिन कायस्थ समाज इसमें कैसे अपना उत्थान करेगा वो नहीं समझ पाते I और इसी परेशानी के चलते वो जातीय गठबंधन जैसे फार्मूले लेकर हास्य का कारण बनते हैं I
वस्तुत एक राजनेता के साथ हमेशा यही परेशानी होती है की वो सामाजिक वयवहार में भी अपनी राजनैतिक प्रतिबधता को ढोने और समाज से उसकी अपेक्षा करने लगता है I लेकिन राजनेताओं को ये याद रखना होगा की समाज अब उनके भाषण नहीं उनसे हिसाब मांगने के लिए खड़ा होने लगा है I
राजनेताओं को अब ये बताना होगा की आखिर उन्होंने सम्मेलनों से इतर कायस्थ समाज के लिए क्या किया है ? क्या वो समाज के अंतिम आदमी की मदद के लिए कोई प्रयास कर रहे है या आगामी दिनों में उसके लिए कोई ख़ास योजना है I हमारे राजनेता संसद से लेकर समाज तक कायस्थ समाज का नाम कैसे लेते है I
सामाजिक संगठनों को भी राजनेताओं को अपने जातीय एजेंडे को राजनेताओं को बताना होगा और उन्हें ये समझाना भी होगा की आपको यहाँ कायस्थ समाज के लिए चिंतन के लिए बुलाया गया है , राजनैतिक चुनावी रैली के लिए नहीं I राजनेताओं को सामाजिक संगठनो की ताकत का अंदाजा जब तक नहीं होगा तब वो कायस्थ समाज के लिए कोई गंभीर बात भी नहीं करेंगे I
हा हा हा हा ………………… अब ABKM ने KADAM प्रकोष्ट का वादा किया है. अब ………….