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सर्वानंद सर्वज्ञानी जी खबर लाये है : “हम कायस्थ हैं” “आत्मा बिकाऊ है” पोस्ट करने वाले की आत्मा तो कब की बिक चुकी और बार-बार, कई बार बिकी

उत्तर प्रदेश का चुनावी हाल देखकर सर्वानंद सर्वज्ञानी का ज्ञान आजकल कुलांचे भरने लगा है. आज बहुत गंभीर मूड में अपने समाज की बात कर रहे हैं. चुनावी मौसम में उत्तर प्रदेश में कायस्थ लक-दक होकर घुम रहा है कि शायद कहीं कुछ ग्रह-नक्षत्र अनुकूल हो जाए. हाँ भाई कायस्थ सिर्फ भाग्य-भरोसे जीने वाला प्राणी हो गया है. किसी क्षेत्र में नंबर एक बनने के लिए बहुत साधना करनी पड़ती है. जब साधन नहीं तो साधना कैसे हो? बड़ी विषम परिस्थिति है. अभी कुछ दिनों पहले हमारे कर्णधार लोग उठक-बैठक, चर्चा-सम्मलेन इसलिए कर रहे थे कि समाज का अगुआ कहलाकर कुछ मुद्रा प्राप्त कर लें. सारे कायस्थ रत्न अपने लिए मखमली गद्दे की तलाश में काकभुसुंड उवाच करते फिर रहे हैं. पर शायद उन्हें नहीं पता कि राजनीति की चमकदार सतह सारे अश्त्रों को परावर्तित कर देती है. और उबड़-खाबड़ रास्ते न जाने कितनो की पसलियाँ तोड़ देती है. सो “माया मिली ना राम” वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. अब तो कायस्थ के विरुद्ध कायस्थ होगा. लो कर लो राजनीति.बड़ी उठा-पटक चल रही है लखनऊ में. बाप-बाप ना रहा, पुत्र-पुत्र ना रहा. सत्ता की कसम हमें खुद पर भी ऐतबार ना रहा. आगे देखते जाईये बाप-बेटा में कोई दरार ना रहा.यह तो यदुवंशियों की लड़ाई, नहीं नहीं पैंतरा है, पर चित्रगुप्तवंशी सदमे में क्यों हैं? हमारे कुल में न जाने कितने महान विभूति हुए हैं. पर किसी के इर्द-गिर्द दस कायस्थ भी कभी गोलबंद नहीं हुए. हाँ, उनके चले जाने के बाद हमसब पांच-दस के ग्रुप में जयंती एवं पुण्यतिथि धड़ल्ले से मना कर समाचार पत्र एवं सोशल मीडिया पर हीरो जैसे फोटो पोस्ट करना नहीं भूलते. क्योंकि हम कायस्थ हैं और हमारा फर्ज बनता है कि हम अपने कुल गौरवों के लिए कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम अपना भला करने की कोशिश तो कर ही लें?हम कायस्थ हैं तो सबसे पहला फर्ज हमारे पुरखे भगवान श्री चित्रगुप्त जी के प्रति है. इसलिए हम कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को उन्हें इतना याद करते हैं..... इतना याद करते हैं..... इतना याद करते हैं कि........... वर्ष भर का कोटा एक ही दिन पूरा कर देते हैं. आखिर हमें और भी तो कई काम करने होते है.हम कायस्थ हैं इसलिए कुछ को छोड़ दिया जाए तो अधिकाँश चित्रगुप्त मंदिर पर कोई एक फूल तक नहीं चढ़ाने नहीं जाते. कायस्थ को फुर्सत नहीं और गैर कायस्थ को श्री चित्रगुप्त भगवान में भक्ति नहीं. कारण हमने श्री चित्रगुप्त भगवान को खानदानी चादर में जकड़ जो रखा है.
हम कायस्थ हैं इसलिए हमारा विचार बहुत हाई क्लास का है. अभी एक तथाकथित बड़े संगठन के बड़े तथाकथित राष्ट्रीय पदाधिकारी की पोस्ट पर नजर पड़ी “आत्मा बिकाऊ है” हा...हा...हा...पोस्ट करने वाले की आत्मा तो कब की बिक चुकी और बार-बार, कई बार बिकी. अब सेकंड हैण्ड माल का कबाड़ी दाम भी ले लेना चाहते हैं क्या? उन्होंने बुद्धिजीवी समाज की आत्मा की कीमत भी बतायी है. आप भी जान लीजिये- कुछ मांस के टुकड़े, निरीह मुर्गों की टांग एवं सूरा के कुछ पैग? हाँ जी सच्ची-सच्ची कह रहा हूँ. यही है बुद्धिजीवी समाज के आत्मा की कीमत. मैं तो पढ़-सुन कर अपना आत्मा टटोल रहा हूँ क्योंकि हम तो ठहरे शुद्ध शाकाहारी. हमारी आत्मा की तो कोई कीमत ही नहीं लगाई गई है. छिः.....छिः.....मांस..सूरा......अरे भाई हमारा फ्री में ले लो?
हम कायस्थ हैं इसलिए भगवान् श्री चित्रगुप्त भला करेंगे ही. हमें तो लगता है हमारे पूर्वज ने हमें बारह बना कर सचमुच हमारे समाज का बारह बजा दिया है. कहीं पढ़ा था- स्वामी विवेकानंद अपने पिता के चौदह संतान में सातवें नंबर पर थे. रविन्द्रनाथ टैगोर नवें नंबर पर और महात्मा गांधी जी अपने पिता के पांचवीं संतान थे. (यह सच है या झूठ हमें नहीं पता.) पर हमारे पांचवे, सातवें एवं नवें पायदान पर कौन हैं आज तक समझ नहीं सका. यहाँ तो सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए ही सब उतावले हैं.आपने भी पढा होगा. हमारे युवा भाई कितना आत्मज्ञान व्हाट्स एप्प पर उड़ेलते हैं. यह ज्ञान भी कहाँ अपना होता है भाई. यह तो उसकी जूती उसके सर वाली बात है. दिनभर टोपी पहनाने का काम करते हैं और शाम होते-होते फ्री का रिचार्ज मिल जाता है.हम कायस्थ हैं इसलिए हमारे समाज में बारह विवाद जन्मजात है. यहाँ तक की हमारे आदि पूर्वज भगवान् श्री चित्रगुप्त जी को भी हमारे कुछ भाई खुद भगवान मानने से इनकार कर देते हैं. हमारे कुछ भाई धर्मराज के मुंशी मानते हैं तो इतिहास, लेखक-समाज की वकालत करता है.बहरहाल इस चुनावी मौसम में हमारे भाई एक से दस तक गिनती में मशगुल हैं. तथाकथित समाज के अलंबरदारों के पास गिनती के नाम भी नहीं पता. सिर्फ टिकट-टिकट की रट ! एकदम अजब-गजब. उत्तर प्रदेश में देश के कायस्थ आबादी के पचास प्रतिशत लोग रहते हैं जहाँ के हरेक लोग एक दुसरे के उलट विचार रखते हैं. हम तो कहते हैं कि हमारे देश में एक चुनाव भगवान भी होने चाहिए तथा उनका मंदिर भी ताकि हमारे भाई द्वारा उनकी भजन–आरती कर राजनीति में स्थान बना लिया जाय.हम कायस्थ हैं इसलिए हमें शिक्षा पर घमंड है, लेखक, कवि, समालोचक, साहित्यकार, अर्थशास्त्री, प्रोफेसर, डॉ, इंजिनियर, विचारक अथवा पथ प्रदर्शक, आई ए एस, आई पी एस की संख्या देखकर यहाँ तक कि व्हाट्स एप्प के पोस्ट देखकर भी नहीं लगता कि कायस्थ शिक्षा में बहुत आगे है. हम कबतक आरक्षण को दोष देते रहेंगे ? अगर हममे टैलेंट है तो हम आगे रहेंगे ही. नहीं है तो बियावान में भटकते रहिये. स्थिति ऐसी है कि हम अपने बच्चो को अच्छे नंबरों से दसवीं पास हो जाने पर बधाई देने लगते हैं.हम कायस्थ हैं इसलिए चार लोग अगर वाह-वाह कह दें तो कायस्थ एकताबद्ध, बुद्धिमान एवं समर्पित नजर आने लगती है अन्यथा विवेक शून्य, बिखरा हुआ एवं आत्मबेंचू दिखती है? सामाजिक शक्ति के नाम पर कायस्थ समाज पूरी तरह शून्य है. अतीत में सामाजिक प्रतिष्ठा में नंबर एक पर रहे कायस्थ की प्रतिष्ठा अब कोई स्थान नहीं रखती.
हम कायस्थ हैं इसलिए हमारे यहाँ अगर कोई संपन्न है तो पूछिय मत उनके रुआब का. अगर राजनेता या मंत्री हो गए तो वे समदर्शी का गाउन ओढ़ने में सबसे अगली कतार में खड़े दिखेंगे. अगर संयोगवश किसी के पास काले कारनामे से अकूत धन आ गया हो तो सबसे बड़े खानदानी रईस वही हैं. और जो सबसे पीछे हैं वे कायस्थ-कायस्थ कह कर गला सुखा रहे हैं.
हम कायस्थ हैं इसलिए हमारे संगठनों का हाल भी अलबेला है. संगठनो की बात करें तो कोई ट्रस्ट बनाकर मालो-माल हो गया तो कोई ट्रस्ट में ही डूब गया. कुछ सम्मेलन-बैठक के आयोजन के नाम पर वसूली कर अपने सभी सोये हुए अरमान पुरे कर लिए. समाज के प्रबुद्ध वर्ग पल्ला झाड घरों में दुबका तो निर्बुद्ध लोग मार्गदर्शक की भूमिका में. संगठन पर हावी होते समाज के विकृत लोगों की जमात से संस्था पर विश्वास ही ख़त्म हो गया. यानी कर्तव्य, विचार, दृष्टि सभी पोल्युटेड. संगठन का गौण होता हुआ उद्देश्य अब समाचार पत्रों में दो लाइन लेने तक सिमित हो गया है.विकास के नारे एवं बडबोलेपन के साथ अब अपने समाज को भी जीने की आदत पड गई है. जय हो श्री चित्रगुप्त भगवान की. -सर्वानंद सर्वज्ञानी
सर्वानंद जी खबर लाये है एक काल्पनिक पात्र है , जो समाज के विभिन्न मुद्दों पर कटाक्ष करता है I इसका किसी भी व्यक्ति से मिल जाना एक संयोग मात्र हो सकता है I लेख में प्रस्तुत घटनाएं समाज के हित के लिए उभारी जाती है और पूर्णतया हास्य व्यंग कटाक्ष के स्तर भी समझी जाती है I

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