पर समुचित व्यवस्था नहीं थी इस तरह की कुप्रथाओं के लिए।खैर 90 के दशक से होते हुए 21वी सदी में आ गए , सदी नयी थी तो नये और थोक के भाव से संगठन तैयार हो गए । यूपी, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ, महाराष्ट्र से देश के बाहर तक सब का सुर हम साफ सुथरे तुम चोर। बात यहीं रूकती नहीं दिखती शब्दों की मर्यादा व्यक्तियों का लिहाज सब गायब हो गये।आज की तारीख में स्वयंभू नेता बने लोग कहेगें साल में एक साथ पूजन करके हम बडे नेता बन गए समाज हमारे पीछे खडा है, चित भी मेरी पट भी मेरी संगठन में घर के सारे सदस्य मिल कर अपने घर का भला कर रहे हैं समाज का कौन सा भला हो रहा है।जमीन पर कार्य करने के मायने इनके लिए सिर्फ मुंह से जुगाली करने के बराबर है, कायस्थ समाज में अगर कुछ करने की जरूरत है तो बच्चों को महिलाओं को युवाओं और पढे लिखे लोगों की सक्रियता आने के बाद ही हो पायेगा।क्योंकि कुछ लोगों का वर्चस्व खत्म होना बहुत जरूरी है समाज में सभी के लिए स्थान है भगवान चित्रगुप्त सबके आराध्य देव हैं, समाज का एक धडा जो वाकई समाज की नई स्थापना में योगदान दे सकता है ये नये पैदा हुए मोबाइल क्रांति , व्हाट शप के अनर्गल चर्चा से दूर रहना चाहता है, इन्हें मुख्य धारा में जोडे जाने की आवश्यकता है, आने वाले चुनावों की तैयारियों को ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि हमारी नुमाइंदगी जब तक सरकार तक नहीं होगी ठीक तरह से कुछ भला नहीं होगा, आर्थिक खस्ता हालत झेल रहे कायस्थ परिवारों के लिए रोजगार, शिक्षा, उनके बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण और स्वस्थ पर्यावरण अगर दे पाने में कोई सहयोगी बने तभी समाज का भला होगा।संगठनों के हुल्लड़ मचाने वाले लोग को चिन्हित करने का समय आ गया है, महिलाओं की भागीदारी बढाने की जरूरत है तभी भला होगा। शेष अगले वार्ता पर। जय चित्रांश श्वेता रश्मि मुख्यधारा मीडिया की जानी मानी पत्रकार है और कायस्थ खबर की कंसल्टिंग एडिटर है
संगठनों के हुल्लड़ मचाने वाले लोग को चिन्हित करने का समय आ गया है – श्वेता रश्मि
श्वेता रश्मि I भगवान चित्रगुप्त का स्थान हिन्दुओं में कर्म और फल का लेखा जोखा सहेजने वाले और न्यायाधीश के तौर पर स्थापित है। स्वाभाविक है कि जब भगवान चित्रगुप्त को पूरी दुनिया में किसी ना किसी रूप में याद किया जाता है तो उनके अपने वंशजों में उनकी भूमिका परिवार के सबसे बडे मुखिया के रूप में कायम है, विभिन्न प्रकार के पारिवारिक उत्सवों में उनका आशीर्वाद अनिवार्य है।हर कायस्थ के घर के मंदिर में भगवान विराजमान हैं आदिकाल से।
मैं पिछले कुछ सालों में जब देखती हूँ तो एक अलग ही किस्म की तस्वीर दिखती है, आप मैं और अन्य चित्रांश बडे पैमाने पर एक दूसरे के मदद और भलाई के लिए खडे नजर आते थे, शादी विवाह, बच्चों की पढाई लिखाई, और भगवान की आराधना सर्वसम्मति से किये जाते थे। एक व्यक्ति समाज के लिए राह दिखाने की कोशिश करता था जिसकी बात का सम्मान सभी करते थे। समय बदला आधुनिकता आई, साथ ही एक विचारधारा पनपी कायस्थ राजनीति, हर जगह दस नेता और संगठन पैदा हो गये जिनका मकसद सिर्फ अपनी राजनीति और जेब भरना हो गया। पहले पहल लोगों ने समर्थन दिया हर प्रकार से खडे हुए, लेकिन ये कंक्रीट की तरह पैदा ही हुऐ थे सिर्फ अपनी अहम को धार देने के लिए, 80 के दशक में सामाजिक बुराइयों से कायस्थ समाज भी नही बच सका उनके चपेट में आ ही गया, खेत खलिहान कम हो रहे थे, नौकरी के अवसर पैदा हो रहे थे, दहेज की भेट हर समाज की बेटियां बेहिचक चढाई जा रही थी, पर कायस्थों की बेटियां ज्यादा ही आग की लपटों में झुलस रही थी।