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सर्वानंद सर्वज्ञानी की कलम से……………… मम्मी, मैं कब बाप बनूँगा?

संगठन शब्द आते ही पहली बात जो मन मे उठती है, वह है सरकार द्वारा निबंधित है क्या? उसके बाद दूसरा प्रश्न- अध्यक्ष कौन व्यक्ति हैं? इसका अर्थ यह नहीं कि आप उन्हे जानते हैं अथवा नहीं? तीसरा प्रश्न- संविधान क्या है? अब जब सोच थोड़ी आगे बढ़ती है तो संगठन से जुड़े पदाधिकारियों पर नजर जाती है। कोई हमारा जान-पहचान का है क्या? अब इच्छा जागती है खुद पदाधिकारी बनने की। कुछ जुगत भिड़ाई और कुछ हिलना-डुलना। अंदर हो गए, तो देखा कुछ लोगों के गले मे फूलों की हार शोभायमान है। ललक जागी और हो गए शुरू? मम्मी, मैं कब बाप बनूँगा ? अब असली समाज सेवा की जंग शुरू होती है। अब संविधान देखने, स्मृति-पत्र पढ़ने-समझने की जरूरत नहीं। सिर्फ बैठक-दर-बैठक करनी है और जो मन मे आए कह देना है। एकता, बिखराव, बुद्धिमानी और अपनी उपलब्धियां आदि - आदि । लक्ष्य निर्धारित है। मैं कब बाप बनूँगा? मेरा कलुआ भी बड़का सामाजिक नेता बन गया है। जहां जाता है, एक बात जबान पर रहती है। कायस्थों मे एकता नहीं है। मैं सबको जोडुंगा। गरीब भाइयों के लिए काम करना है। कब से करना है, क्या करना है, कैसे करना है इसे जानने की आस मे हर मीटिंग मे जाता कायस्थ हर बार कलुआ की जय-जयकार करता रहता है। आप मानो या न मानो, बस गरीबी के नारे के साथ ही सेवा की जगह राजनीति संगठन का असली उद्देश्य हो जाता है। लक्ष्य निर्धारित है। मैं कब बाप बनूँगा? अब बाप बनने की उम्र थोड़े न होती है? योग्यता की भी जरूरत नहीं? थोड़ा मीठा, थोड़ा घुमावदार और थोड़ा जवानी की जोश से लबरेज डींग? हाँ कानून की कहें तो 18 तथा 21 वर्ष के बाद ही ठीक रहेगा। थोड़ा पार्क मे टहलना-टहलाना, सैर सपाटे। थोड़ी मान मनौवल, थोड़ी खिंचाई? बस। लक्ष्य तो एक ही है न! मैं कब बाप बनूँगा? हमारा कलुआ अब बदल गया है। मैला-कुचैला कुर्ते-पाजामा ने अब लक-दक घड़ी डिटेर्जेंट की सफेदी की चमकार वाली शुद्ध सफाई, तिसपर खादी की डिजाइनर बंडी और पैरों मे चकाचक सफ़ेद जूते, आँखों पर सुनहरे फ्रेम का डिजाइनर चश्मा? अब आंखे नहीं ठहरती उसपर। पान दुकान पर राजनीगंधा और तुलसी खाते हुए पकड़ कर गहरी नजरों से जब देखा तो बोल पड़ा, आप सर्वज्ञानी जी इस तरह क्यों देखते हैं? मेरा एक ही लक्ष्य है ! मैं कब बाप बनूँगा? मैं भौचक उसे देखता रहा और वह मुसकुराते हांथ हिलाते चलता चला गया। मैं आज तक सोच रहा हूँ, यह बाप बनेगा तो करेगा क्या? - सर्वानंद सर्वज्ञानी।

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