यूं तो कायस्थ संस्थाएं काम धाम के नाम पर जीरो रहती है मगर प्रपंच करने में इनका कोई सानी नहीं है देश में कोरोना चल रहा है तो देश की बाकी संस्थाओं की तरह कायस्थ संस्थाओं ने भी आजकल कोरोना योद्धा बांटने का ठेका ले लिया है आजकल जिधर देखो उधर कोरोना योद्धा बांटे जा रहे हैं इतने तो कोरोना संक्रमित नहीं हुए जितने कोरोना योद्धा दिखाई दे रहे हैं मजेदार बात यह है कि थोक के भाव बढ़ रहे इन प्रमाणपत्रों की उपयोगिता अब हास्यास्पद हो गई है
ऐसा ही एक केस कल दिल्ली की कायस्थ महासभा के कोरोना योद्धा के प्रमाण पत्र आने के बाद दिखाई दिया खुद को अखिल भारतीय कायस्थ महासभा होने का दावा करने वाली एक नवोदित संस्था ने अपने ही राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष को कोरोना योद्धा का सम्मान दे दिया ऐसे में सवाल यह है कि इस किसी भी संस्था में प्रदेश स्तर के अधिकारी अपने राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष को कैसे कोई प्रमाण पत्र दे सकते है । वरीयता क्रम जैसा कोई विचार संस्था को पता है या नहीं । और मजेदार बात ये है कि पदाधिकारी भी अपने कनिष्क से ऐसे प्रमाण पत्रों को लेकर धन्य हो रहे क्योंकि शायद कहीं मोहल्ले में अपनी राजनीति साबित करने के लिए ऐसे प्रमाण पत्रों को फ्रेम कराना आवश्यक होता होगा दरअसल कायस्थ राजनीति में ऐसे ही प्रपंचो के कारण आगे नहीं बढ़ पाते हैं क्योंकि शायद ही उन्होंने कोई अचीवमेंट अपने कार्य के बल पर पाया होता है ऑर हम चुनावों में कायस्थों को कोई टिकट नहीं से रहा जैसा रोना रोते रहते है
जाती की संस्थाएं अपने लोगो को कोरोना योद्धा प्रमाण पत्र बांट लेती हैं और जो डॉक्टर पुलिस प्रशासनिक अधिकारी असली कोरोना योद्धा हैं वह अपनी जान गवा रहे हैं लेकिन कहीं पर भी कुछ ना करते हुए दिखने वाले लोग कोरोना योद्धा के प्रमाण पत्र पा रहे हैं खुद को बुद्धिजीवी कहे जाने वाले समाज में भी प्रमाण पत्र इतने हल्के होंगे ये देखना सबको जरूरी है