प्रयागराज में कायस्थ आज भी केपी ट्रस्ट की राजनीति से बाहर नहीं निकले है यह कहना है प्रयागराज उत्तरी के वोटर और कायस्थ पाठशाला से जुड़े विचारक और उपासना टीवी के संस्थापक विनीत खरे का।
कायस्थ खबर के अब कायस्थ बोलेगा कार्यक्रम में बोलते हुए विनीत खरे ने कहा कि दरअसल प्रयागराज कायस्थ बाहुल्य इलाका क्षेत्र जरूर है लेकिन यहां के लोग अभी तक कायस्थ पाठशाला ट्रस्ट की राजनीति से बाहर नहीं सोच पाए ऐसे में जब राजनीतिक परिचर्चा और भागीदारी की बातें आती हैं तो कायस नेताओं की सोच पाठशाला ट्रस्ट के इर्द-गिर्द ही रह जाती है जिसका परिणाम इस क्षेत्र में कायस्थों की संख्या ज्यादा होने के बावजूद राजनीतिक दलों द्वारा टिकट न दिए जाने से दिखाई देती है
वर्तमान में कायस्थ समाज की ओर से शहर उत्तरी से राष्ट्रवादी विकास पार्टी से श्रीमती रतन श्रीवास्तव चुनाव लड़ रही हैं जबकि शहर पश्चिम से भाजपा के टिकट पर सिद्धार्थ नाथ सिंह एक बार फिर से चुनाव लड़ रहे हैं ऐसे में दोनों ही जगह कायस्थ समाज को अपना वोट कायस्थ समाज के नाम पर देते हुए दिखना चाहिए जिससे इस क्षेत्र में कायस्थों की राजनीतिक कायस्थ पाठशाला ट्रस्ट के अलावा राजनीतिक परिदृश्य पर फलीभूत होते दिखे
परिचर्चा में मौजूद आशुतोष श्रीवास्तव ने भी स्पष्ट कहा कि जब तक कायस्थ समाज को सिर्फ कायस्थ के नाम पर वोट करना नहीं आएगा तब तक हम अपनी राजनीतिक परिस्थिति को साबित नहीं कर पाएंगे आशुतोष ने कायस्थ समाज को बेहद प्रोग्रेसिव बताते हुए कहा कि कायस्थ समाज वस्तुतः जाति के आधार पर वोट करने की जगह बेहतर प्रत्याशी के ऊपर वोट करता रहा है लेकिन यह सब सोच विदेशी जमीन पर बेहतर है जहां सभी लोग इस पैटर्न पर चुनाव लड़ते हैं भारत अभी भी बेहतर प्रत्याशी को वोट करने वाली स्थिति में नहीं आया है ऐसे में जहां कायस्थ बहुतायत में है वहां कम से कम कायस्थों को सिर्फ कायस्थ प्रत्याशी देखकर वोट करना चाहिए ऐसे में अगर शहर उत्तरी में राजनीतिक दलों ने कायस्थ समाज को नजरअंदाज किया है तो भले ही रतन श्रीवास्तव एक छोटे से राजनीतिक दल से खड़ी हुई है लेकिन कायस्थ समाज को अपना समर्थन उनको देना चाहिए ।
रतन श्रीवास्तव की सामाजिक या राजनीतिक पहचान के प्रश्न पर आशुतोष श्रीवास्तव का स्पष्ट कहना था कि महत्वपूर्ण यह नहीं है प्रयागराज में नालियां भरी हुई है या रतन श्रीवास्तव उसके बाद क्या कर पाएंगी महत्वपूर्ण यह है कि अगर रतन श्रीवास्तव को मिलने वाले वोट के दबाव से किसी एयरपोर्ट या स्टेशन का नाम भगवान चित्रगुप्त के नाम पर रखने को सरकारें मजबूर हो जाती है तो उसके लिए रतन श्रीवास्तव को वोट दिया जाना जरूरी है ।