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रविवार विशेष : चुनाव खतम, कायस्थ समाज की जागरूकता भी ख़तम

कायस्थ खबर डेस्क I दिसंबर की सर्दी ने ऐसा लगता है कायस्थों का खून भी जमा दिया है I पिछले काफी समय से राजनीतक दलों में टिकट ना मिलने और बाद में वोट देने ना देने जैसी अपीलों के बाद अब जब सभी जगह चुनाव ख़तम हो गए हैं तो कायस्थ समाज के मूर्तधन्य नेता शान्ति के साथ सो रहे है जिनकी कुम्भ्करनी नींद अब २०१९ के चुनावों से महज ६ महीने पहले खुलेगी I फिर से वही समाज जागरूकता के अभियान चलेंगे , राजनैतिक दलों को कोसा जाएगा , कायस्थ राजनैतिक दलों के कायस्थ हितैषी होने के दावे प्रस्तुत किये जायेंगे और आखिर में फिर से कायस्थ समाज के लोगो को भावनात्मक ब्लैकमेल के जरिये अक्षम कायस्थ प्र्याशियो को वोट देने की अपीले की जायेंगी I कायस्थ स्वाभिमान के जरिये कायस्थ चुनाव लढ़ कर अपनी महत्वाकांक्षा को पालने वाले नेता चुनाव ख़तम होते ही गधे के सर से सींग की भाँती गायब हो गए है I ऐसे में बड़ा सवाल ये है की क्या राजनीती में अपनी ताकत महज ६ महीने पहले कायस्थ समागम या बुद्धिजीवी सम्मलेन करने से आ जायेगी I सवाल ये है की आखिर कायस्थ समाज के नेता समाज से सीधे संपर्क में क्यूँ नहीं है , क्यूँ सिर्फ टिकट मिलने के बाद ही हम समाज में जायेंगे जैसी सोच हमारे रजनैतिक कर्णधारों के दिमाग में है वस्तुत राजनीती आज पूर्णकालिक रोजगार की तरह लेने की ज़रूरत है,  पार्ट टाइम व्यवसाय की तरह इसमें सफल होने के जुगाड़ कायस्थ समाज को हमेशा ही हाशिये पर रखेंगे इसलिए अब भी वक्त है जब कायस्थ समाज के राजनीती में इच्छुक लोग अभी से आगामी 5 साल की तैयार निरंतरता के साथ शुरू करें I २०१९ में लोकसभा के चुनाव तो नजदीक ही है और गिनती के ही लोगो के इसमें शिरकत करने की संभावना वयक्त की जा सकती है क्योंकि लोकसभा के चुनाव के लिए ज़रूरी धन और जन समर्थन इतनी जल्दी पाना आसान नहीं, राजस्थान में कायस्थ चुनावी ताकत दिख नहीं सकते है, मध्यप्रदेश में भी गिनती के ही लोग चुनावी समर में आ पायेंगे  लेकिन २०२० में बिहार  -२०२२में यूपी  में विधान सभा के लिए अगर अभी से तैयारिया की जाए तो ज़रुरु कायस्थ समाज अपनी पकड़ और दावे को राजनैतिक दलों के सामने मजबूती से रख सकता है सामाजिक संगठनो की क्या हो भूमिका ? देखा जाए तो पिछले कई सालो से ये बड़ा प्रशन है की सामाजिक संगठनों की भूमिका चुनावों में क्या हो , देखा जाए तो कायस्थ समाज में अधिकाँश संस्थाए पूजा समीतियो की तरह ही काम कर रही है जिनके अधिकाँश काम कुछ सांस्क्रति कार्यक्रमों. शादी सम्मेलनों और साल में एक बार भगवान् चित्रगुप्त पूजा तक ही सीमित है ,  ऐसे में जिला स्तर पर संचालित हो रही ये समितियां अपने आप को बड़ा संगठन तो प्रदर्शित करती है लेकिन एक साथ अगर ५००० कायस्थों को एक जगह जमा करने की बात कह दी जाती है तो सब हाथ खड़ा कर देती है I सामाजिक संगठनो को ये समझना होगा की आखिर राजनीति ताकत में उनकी भूमिका कैसे महत्वपूर्ण हो सकती है ? राजनीती ताकत में सामाजिक संगठनो के स्वयंभू अध्यक्षों कोसबसे पहले अपने आप  को बड़ा नेता साबित करने की आदत को छोड़ना पड़ेगा I क्योंकि ये देखने में आया है की हमारे सबसे बड़े संग्तानो के नेता भी किसी भी राजनीति दल के सामने सौदेबाजी के समय दंडवत ज्यदा दिखाई देते है जिसके चलते जब सौदेबाजी की बातें आती है तो उनको एक तरफ रख दिया जाता है I आपसी प्रतिध्वन्दिता और एक दुसरे को ही गिराने की कोशिश में लगे ये नेता सोशल मीडिया  पर तो दिखाई देते है लेकिन हालत इतने दयनीय है की इनको अपने जयकारे के पोस्ट भी खुद ही डालने पड़ते है इसलिए सामाजिक संगठनो को भी अपनी शक्ति को साबित करने और मजबत करने की आवशयकता है कायस्थ खबर सभी राजनैतिक इच्छा शक्ति रखने वाले लोगो से अपील भी करता है की वो अपने प्लान हमारे साथ साझा भी कर सकते है ताकि अगले 5 साल में उनके कार्यो को सर्वसमाज के सामने लाकर उनकी स्थिति को मजबूत किया जा सके I

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