मेरे महामंत्री एवं अध्यक्षीय काल मे कायस्थ पाठशाला मुख्यालय मे उपलब्ध अभिलेखो के आधार पर मै निम्न आख्या दे रहा हूँ।और इससे सम्बंधित यदि किसी को साक्ष्य देखना हो तो वह मेरे पास उपलब्ध हैं और यदि कोई त्रुटि हो तो उसका स्वागत है। जिससे कि आख्या मे उचित सशोंधन किया जा सके।
टीपी सिंह (तेज प्रताप सिंह )
प्रथम चरण
1÷ मुगल सल्तनत के बाद जब इस्ट इन्डिया कम्पनी के द्वारा बरतानिया सरकार हिन्दूस्तान पर अपने प्रशासनिक राज्य का विस्तार करने लगी और भारत के देश भक्तों ने भारत की अस्मिता पर आघात की चेष्टा देखी तो अग्रेजो के चंगुल से छुड़ाने के लिये तीन प्रकार की शक्तिया सामने आई एक वह जो शान्ति के माध्यम से अहिंसा की नीति के अन्तर्गत आँदोलन छेडना चाहते थे, दूसरे वह देश भक्त जो क्रांति के जरिये अन्ग्रेजो के प्रयास विफल करना चाहते थे और तीसरे वह लोग जो स्वतंत्रता के बाद देश का भविष्य सुधारने की सोच रखते थे।
2÷तीसरी कड़ी मे यदि देखा जाय तो सबसे बडा योगदान जौनपुर के निवासी तथा अवध अदालतों मे वकालत करने वाले मुंशी काली प्रसाद जी का है।उनहोंने अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति एक ट्रस्ट के नाम दिनांक 18/10/1886 मे बनाकर कायस्थ पाठशाला जो एक पंजीकृत सस्था को सचांलन का भार सौपा,जिसकी स्थापना सन 1883 मे हुई थी। इस ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य समाज मे शिक्षा का प्रसार करना था। उनके पदो का अनुसरण करते कायस्थ समाज के तमाम देशभक्तो ने शिक्षा प्रचार प्रसार के लिये उक्त संस्था को अपने उद्देश्यो मे आगे बढाने के लिए अमूल्य सम्पत्तिया दान की।
3÷मनस्वी मुशी काली प्रसाद (कुलभाष्कर) जी का जन्म जौनपुर शहर के चिड़ीमार टोले (लपटन गंज) मे दिनांक 3 दिसम्बर 1840 ई मे दिन गुरूवार को हुआ था। इसके बाद 22 अक्टूबर 1859 से 14 अक्टूबर 1864 तक प्रतापगढ़ ,उन्नाव,सुल्तानपुर,और लखनऊ जिलो मे उन्होने मुशंरिम बन्दोबस्त के पद पर कार्य किया।1865 मे वकालत की परिक्षा मे बैठै और प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुये। उनका विवाह जौनपुर के सिपाह मुहल्ला निवासी वकील श्री बाबू लाल की तीसरी पुत्री कुमारी सुशीला देवी के साथ हुआ था। इसके बाद ही मुंशी जी के जीवन की सफलता यश तथा वैभव से युक्त आकर्षण का अध्याय आरम्भ हुआ। मुशी जी ने लखनऊ के चीफ कोर्ट मे वकालत आरम्भ किया धीरे धीरे उन्होंने अपने इस व्यवसाय मे काफी यश अर्जित कर लिया ताल्लुकेदारी के बहुत से मुकदमो मे उन्होने लाखो की धनराशि अर्जित की। चल और अचल संपत्ति भी उन्हे पारिश्रमिक तथा शुकराना के रूप में प्राप्त हुई। उनकी ख्याति देश के वरिष्ठ वकीलो मे होने लगी ।
4÷ अपार धन सपंदा और यश के बावजूद मुंशी जी की कोई सतांन ना थी ।उनकी धर्मपत्नी दिन रात इसी चिंता मे रहती थी हम लोगो के बाद घर मे चिराग जलाने वाला कोई नही है,इस अकूत सपंति का क्या होगा ? अपने पति से बराबर एक बच्चे को गोद लेने की बात कहती थी-मुंशी जी बड़ी गम्भीरता से पत्नी की बात सुनते और मन ही मन सोच -विचार करते ।एकाएक एक दिन पत्नी से बोले -"लो तुम्हारी इच्छा अनुसार मै बच्चो को गोद लेने जा रहा हु।" किन्तु एक नही अनेक बच्चों को चुटकी लेते हुये उनकी पत्नी बोल ही पडी "एक को तो ले ना सके, अनेक की बात करते है" मुशी जी गम्भीर होकर बोले,"भाग्यवान मै बच्चो के लिये स्कूल खोल रहा हु।और इसी स्कूल के नाम अपनी सारी *चल अचल संपत्ति,दैनिक उपयोग की वस्तुओं सहित दान करके निश्चितं हो जाना चाहता हूँ।"
यह सुनकर उनकी पत्नी उठकर अन्दर के कमरे मे चलीं गई।मुंशी जी सोच मे पड़ गये कि शायद मेरी पत्नी को मेरा प्रस्ताव पसंद नही आया,सारी संपति दान करने पर उन्हे कष्ट हो रहा है।
थोडी ही देर मे उनकी पत्नी बाहर निकली और अपने मांग का टीका और पैर का बिछुआ छोड़कर अपना सारा आभूषण एक कपडे की पोटली मे बाँधकर अपने पति के श्री चरणो मे रख कर बोली,"नाथ अपनी दान की सूची मे मेरे इन आभूषणो को भी सम्मिलित कर ले।
सारी सम्पत्ति दान कर आप तो पुत्रवान हो जायेगे किन्तु मै निपुती की निपुती ! 'नाथ लो इन गहनो को' ,मुझे भी पुत्रवती होने का गौरव प्रदान करे।ये कहते-कहते उनके नेत्रों से आँसु बहने लगे ,कण्ठ अवरुद्ध हो गया।
मुंशी जी की भी आँखे सजल हो गई उनके मन की शंका दूर हो गई, उनके मुँह से बरबस निकल ही गया,तुम धन्य हो और मुझे भी धन्य कर दिया।देश , समाज और राष्ट्र के बच्चे तुम्हारे द्वार पर सदैव दीप जलाते रहेंगे पीढ़ी दर पीढ़ी। तुम्हारी कोख कभी सूनी ना होगी और घर सदैव आबाद रहेगा। यह कहते हुए अपनी सारी चल व अचल सम्पत्ति एक वसीयतनामा दिनांक 18/08/1886 के द्वारा कायस्थ पाठशाला के पक्ष मे एक ट्रस्ट के जरिये दान कर दिया।
5÷ इसी क्रम मे कायस्थ पाठशाला का प्रारंभ मुशी जी ने इलाहाबाद के बहादुर गंज मुहल्ले मे सन 1888 ई मे सात विधार्थी से की। अपनी चलती हुई वकालत को मुंशी जी ने लगातार तेरह वर्षों तक उस विद्यालय के बच्चों को पढ़ाया। 1888 ई इन्टेर्स तक की शिक्षा के लिये कलकत्ता विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त हुईजिसको*के•पी•इण्टरमीडिएट कालेज सास्था के नाम से सन 1894 ई मे प्रयाग विश्वविद्यालय मे सम्बद्धता प्रदान की किन्तु इसके पहले ही मुशी जी का नश्वर शरीर इस संसार को छोड चुका था। कायस्थ पाठशाला की प्रगति के लिये तन- मन-धन से वे लगे रहे पर इसकी सीमाओं का सराहनीय विस्तार ना देख सके ।
6÷ कायस्थ पाठशाला की स्थापना और मुंशी काली प्रसाद जी द्वारा उसके लिये दिया गया अपना सर्वस्व दान का ही प्रभाव रहा कि पन्डित मोहन मालवीय ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। कुल्भास्कर जी की प्रेरणा से सर सैयद अहमद खान ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का निर्माण कराया और गुरू रविन्द्र नाथ टैगोर कलकत्ता मे शाँति निकेतन की स्थापना की सर सैयद अहमद खान कहते थे कि "काश मेरे कौम मे एक कुलभाष्कर पैदा हो जाता तो मै अलीगढ़ विश्वविद्यालय को सिराज-ए-हिन्द बना देता।
क्रमश:
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निवेदन÷ उपरोक्त्त लेख लिखने का उद्देश्य कायस्थ पाठशाला एंव समाज मे कायस्थ पाठशाला के स्वर्णिम इतिहास को न्यासी एव आने वाली कायस्थ पीढ़ी तक पहुंचाना है। इस लेख की श्रखंला मे नौ मुख्य चरणो एवं चरण मे मुख्य बिन्दु के विशेष सामयिक घटना उल्लेख किया जायेगा।अतः कायस्थ सभी बन्धु तक कायस्थों की पवित्र शैक्षणिक संस्था की सम्पूर्ण इतिहास आप सभी के सहयोग से सभी तक पहुंचाने का लक्ष्य रक्खा गया है यदि आपके पास संबंधित इतिहास से जुडी कोई जानकारी या उस समय की फोटो हो तो हम सभी आपके इस सहयोग के आभारी रहेंगे।
कायस्थ पाठशाला के इतिहास के संदर्भ में पूर्व अध्यक्ष तेज प्रताप सिंह के लिखे जानकारी को कायस्थ खबर यथास्थिति में प्रकाशित कर रहा है I किसी भी ऐतिहासिक जानकारी के लिए सही या गलत के लिए कायस्थ खबर ज़िम्मेदार नहीं है I
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