
मेरे प्यारे “कायस्थ”समाज सेवियों कुछ तो सबक लो और अभी भी वक्त है, परिवारवाद से तौबा कर लो !!!- धीरेन्द्र श्रीवास्तव्
परिवारवाद का बोलबाला या अंदर ही अंदर घोटाला?
मुलायम सिंह ने सुपुत्र को कुपुत्र का मुखौटा तो पहना दिया लेकिन, आगे क्या होगा? कहीं ये किसी रणनीति या कूटनीति का हिस्सा तो नहीं? ये मुलायम सिंह इतनी आसानी से समझ में आने वाली हस्ती तो है नहीं| हाँ परिवार की डूबती नइया को किनारे लगाने के लिए इसे छोटी सी बलि का नाम दे सकते हैं।
परिवार...
जनाब हर जगह इस परिवारवाद ने ही तो डुबाई है लुटिया। राजनीतिज्ञ हो या समाज सेवक या फिर कथित कायस्थ समाजसेवी सब अपनी-अपनी फेंक रहे हैं और मौका मिलते ही पूरे परिवार की रोटी सेंक रहे हैं।बेवकूफ है "आम"जो इनके बहकाने में कभी धन तो कभी तन-मन लुटाता रहता है|
मुश्किल तो ये है कि जो बडा "घातक' है वो ऐश करता है पर जो कम घातक है वो दूसरे की बखिया उधेड़ अपने दुःख को सुख में बदलने का प्रयास करता है।घायल बेचारा केवल दुखी और केवल दुखी है।
हमने नेहरू परिवार का उदाहरण भी देखा...लालू यादव का भी, अब मुलायम सिंह के परिवार को भी चुनाव से पहले परिवार के लिए ही पारिवारिक सदस्य बेटे की ही कुर्बानी देनी पड़ी।
अब ये तो राजनीतिज्ञ है जो देश-प्रदेश की कमान सँभाल रहे हैं पर हमारे तथाकथित कायस्थ समाजसेवियो का क्या कहें जो निकलते तो हैं ।समाज सेवा करने पर पत्नी-पुत्र की सेवा से विरत ही नहीं हो पात।| ऐसे कई उदाहरण हमारे समक्ष हैं जब परिवार का नाम रोशन करने अथवा ये कहे कि पत्नी को संतुष्ट करने के चक्कर में पूरे संघ/संगठन को दाँव पर लगा दिया और साथीगण " संकोच" अथवा "स्वार्थ" के कारण साथ मे लगे रहे। अंजाम सबके सामने है।कायस्थ समाज की हानि तो हुयी ही "एकता व विकास" के प्रयासो को भी गहरा आघात मिला। भविष्य उसकी तो छोड़िए कौन पूछता भी है...
परिवारों का जो हश्र हुआ, कि एक पथ से भटका तो दूसरे का मन-मस्तिष्क दोनों बेचैन|
पर दुःखी कौन ?
तो साहब दुःखी तो "आम" ही होगा ना...!!!
तो मेरे प्यारे कायस्थ समाजसेवियों कुछ तो सबक लो और अभी भी वक्त है, परिवारवाद से तौबा कर लो !!!अन्यथा हश्र देख रहे हो न।वे समर्थ व शक्तिशाली है कुछ न कुछ रास्ता बना ही लेंगे पर आप क्या करोगे? आपको तो आपका समाज ही मान्यता नही देता शेष समाज क्या समझेगा।आपका अपना
धीरेन्द्र श्रीवास्तव
मुख्य समन्वयक "कायस्थवृन्द"