कायस्थ समाज का दुर्भाग्य है की सामाजिक चर्चा की जगह व्यक्तिगत और दोषपूर्ण आरोप लगाने वाले प्रशान्त सिन्हा रोल माडल बन रहे है
कायस्थ समाज यूँ तो बुद्धिजीवी होने का ढोंग पुरे जोर शोर से करता है I और उसे सभी जगह ढोल बजाकर सुनाता है भी है पर क्या सच यही है ? क्या वाकई कायस्थ समाज में लोग अपना वैचारिक स्तर ऐसा बनाकर रख पाते है की उन्हें बुद्धिजीवी कहा जा सके ? शयद नहींउदाहरण के लिए हम प्रशान्त सिन्हा नाम के एक शख्स के किस्से से समझ सकते है I सोशल मीडिया पर २ - 4 ग्रुपों में दिन रात व्यक्तिगत गुराग्रह करने वाला ये शख्स समाज के कई लोगो का चहेता है I ये शक्श सामाजिक चर्चा में सामजिक की जगह कभी भी व्यक्तिगत हमलो तक जा सकता है I इस शख्स की सामाजिक प्रष्ट भूमि का सच इतना ही है बीते २० सालो में कोई सामाजिक कार्यक्रम आयोजित तो छोडो उसमे सहभागिता तक नहीं किया हैलेकिन कायस्थ समाज के कई स्वयंभू नेताओ की तरह राजनेताओ , अभिनेताओ और पार्टियों के दफ्तरों के आगे फोटो ज़रूर खिचाता मिल जाता है I सामाजिक कार्यो की ह्फ्ग हमेशा ही व्यक्तिगत आरोपों में संलग्न रहने वाले इस शख्स के लिए जब मंगलवार को कायस्थ खबर के संपादक आशु भटनागर ने सामाजिक संगठनो और व्हाट्स आप ग्रुप के प्रबंधको से इस व्यक्ति का अपना वयवहार सुधारने तक निष्काषित करने की मांग राखी तो गजब आश्चर्य जनक परिणाम सामने आयेजो लोग सामाजिक शुचिता की दावेदारी करते दिखाई देते हैं वो इसकी तरफदारी और ग्रुपों से ना निकालने की बात पर अड़ गये I ऐसे में सामजिक बुधजिवी होने का घमंड कायस्थ समाज को कहाँ ले जाने वाला है ये भगवाना चित्रगुप्त ही बता सकते हैक्या समाज के कर्न्धान एक आदमी से इतना डरते है की कहीं उसको निकला दिया तो वो उनके खिलाफ लिखना शुरू कर देगा ठीक वैसे ही जैसे वो कयात्श शिरोमणि आर के सिन्हा के खिलाफ अनर्गल प्रलाप करता रहता है ?
या फिर समाज के कर्णधार सोचते हैं की ऐसे व्यक्ति की ही समाज को ज़रूरत है , समाज को इसका फैसला करना अब आवश्यक है की क्या करना हैआशु भटनागर